गीतकार: , 1864.
संगीतकार: , 1876.
तू है मेरा मैं जानता यह बात
और खुशी से चलूंगा नित तेरे साथ
मैं दुनिया की दोस्ती को जानता ना चीज़
तू शाफी है मेरा ऐ हर दिल अज़ीज़.
प्यार तूने किया सो करता मैं भी
गम ज़दा तू हुआ और जान अपनी दी
बचाने को मुझे गुनाह का मरीज़
तू शाफी है मेरा ऐ हर दिल अज़ीज़.
या जीता या मरता मैं करूगा प्यार
कि हूं तेरी मारफ़त नजात का हकदार
जिस हाल तू है शाफी तो मौत है नाचीज़
मैं मरता ललकारूंगा ऐ हर दिल अज़ीज़.
जब पहुंचूंगा तेरे आसमानी मकाम
तब देखूंगा कामिल प्यार का अन्जाम
वहां मौत मौकुफ है न है एक मरीज़
हमेशा तक गाऊंगा ऐ हर दिल अज़ीज़.